Supreme Court News: देश की सर्वोच्च अदालत ने आज एक मामले की सुनवाई करते हुए एक अहम् और बड़ी टिप्पणी की है, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी भी व्यक्ति को मियां – तियां या फिर पाकिस्तानी कहना गलत है लेकिन ये धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने जैसा अपराध नहीं है, कोर्ट ने शिकायतकर्ता की याचिका को ख़ारिज करते हुए आरोपी के खिलाफ मामला बंद करने का आदेश दिया
आपको बता दें मामला झारखंड के बोकारों में दर्ज की गई एक पुलिस एफ आई आर से शुरू हुआ, बोकारों में पदस्थ उर्दू अनुवादक एवं कार्यवाहक क्लर्क मोहम्मद शमीम ने हरिनंदन सिंह नामक व्यक्ति पर आरोप लगाया था कि जब वे ड्यूटी पर थे और सूचना के अधिकार (आरटीआई) आवेदन के बारे में जानकारी देने के लिए हरिनंदन सिंह से मिलने गया, तो उन्होंने उसके धर्म का हवाला देकर उसके साथ दुर्व्यवहार किया, उन्हें साम्प्रदायिक गालियां देकर अपमानित किया।
शिकायत पर पुलिस ने IPC की धाराओं में दर्ज किया मामला
सरकारी कर्मचारी मोहम्मद शमीम की शिकायत पर पुलिस ने हरिनंदन सिंह पर आईपीसी की धारा 298, 504, 506, 353 और 323 के तहत एफआईआर दर्ज कर ली, इसमें IPC की धारा 298 यानि धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाना, 504 यानि शांति भंग करने के इरादे से अपमान करना और 353 अर्थात सरकारी कर्मचारी को उसके कर्तव्य निर्वहन से रोकने के लिए हमला या आपराधिक बल का प्रयोग करना बड़ी धाराएँ शामिल थीं।
कोर्ट ने धाराओं की समीक्षा के बाद कहा कोई अपराध नहीं बनाता
मामले की सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना और सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने कहा कि हरिनंदन सिंह के बयान गलत थे, लेकिन धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाले नहीं थे, यानि धारा 298 का अपराध नहीं बनता, कोर्ट ने कहा आरोपी की ओर से ऐसा कोई कार्य नहीं किया गया जिससे शांति भंग हो सकती हो, यानि धारा 504 के अनुसार ये भी अपराध नहीं बनता । कोर्ट ने अपने आदेश में यह भी कहा है कि अपीलकर्ता द्वारा कोई हमला या बल का प्रयोग नहीं किया गया, जिससे उस पर भारतीय दंड संहिता की धारा 353 लगाई जा सके।